Sunday, April 11, 2010

ज़िन्दगी कितनी हसीं है

ज़िन्दगी कितनी हसीं है 
मदहोश हूँ मैं उसकी आहोश में!
जिसकी  कोई शुरुआत नहीं,
न ही कोई अंत है!
जन्मों से है वो परम आकर्षक,
जिसने दी है प्रकृति को उसका मकसद!


ऐ हमसफ़र, तुने ही तो दिया है चन्द्रमा की शीतलता,
हिमालय के अडिग स्थिरता की प्रेरणा भी तो तुम ही हो!
आकाश है कर फैलाये, तुम्हारी ही प्रतीक्षा में!
दूर जहां से तारें टिमटिमा रहे हैं,
तुम्हारी एक झलक के मत्वालें! 
ठंडी हवा बह रही है, 
इसी फिराक में, 
की कर ले एक पल का स्पर्श!


सागर की लहरें हैं व्याकुल!
उत्सुक हैं तुम्हारा सन्निद्य प्राप्त करने के लिए!
नदियाँ बह रही हें निरंतर,
अश्रु धारा बन कर, तुम्हारे वियोग में!


मैं  कितना खुश  हूं!
ज़िन्दगी हैं मेरी प्रियतमा 
हर पल जिसका साथ हें,
जनम जन्मान्तर से! 


मेरी शायरी में है वो बनती सवंरती
खुशिया बिखेरती हर पल
प्रेम की लालिमा से वो 
आप्लावित करती मेरा तन मन!


इस शरीर में हूँ आज,
कल चोर के जाऊँगा कहीं और!
लेकिन ऐ ज़िन्दगी
तुम हो वो नश्वर प्रेमिका
मेरे अंतर मन की!

ज़िन्दगी कितनी हसीं है 

मदहोश हूँ मैं उसकी आहोश में!
जिसकी  कोई शुरुआत नहीं,
न ही कोई अंत है!
जन्मों से है वो परम आकर्षक,
जिसने दी है प्रकृति को उसका मकसद!

______________________________________________
Copy Right © All rights reserved - Samrat Kar

No comments:

Post a Comment